║ सिंगरौर क्षत्रिय शौर्य ║
प्रातःकालीन उदित होते सूर्य के शौर्य को प्रणाम करते हुए कुलदेवी जगतजननी शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा भवानी से आशीर्वाद प्राप्त कर उनकी अनुकम्पा से “सिंगरौर क्षत्रिय शौर्य” की रचना कर रहा हूँ। “सिंगरौर क्षत्रिय शौर्य” रचना के प्रेरणास्रोत महंगूपुर(कौशाम्बी) के प्रतिष्ठित जमींदार ठा० श्री सीताराम सिंह सिंगरौर जी के चौथे सुपौत्र एवं हमारे परमपूज्य प्रात:स्मरणीय नानाश्री ठा० त्रिभुवन सिंह सिंगरौर जी हैं। मैं इस रचना के माध्यम से परमपूज्य नानाश्री को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
सिंगरौर-वंश क्षत्रियों का इतिहास इनके शौर्य व पराक्रम से सुसज्जित है। इनकी न्यायप्रियता, स्वाभिमान, अक्खड़पन के आगे मुगलों तथा अंग्रेजों तक की ना चली। ये बड़े ही पराक्रमी, गम्भीर और ज्ञानी हैं। सिंगरौर(त्रेतायुग का श्रृंगवेरपुर) स्थान से निकलने के कारण ये क्षत्रिय सिंगरौर क्षत्रिय के रूप में विख्यात हुए। इन क्षत्रियों के शौर्य को लिख पाना मेरे बस की बात नहीं है फिर भी मैं अपने इस रचना के माध्यम से इनके बारे में बताने का छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ।
ये स्वधर्म-क्षात्र के पालनकर्ता, फैली इनकी ख्याति है..
सिंगरौर वंश(क्षत्रिय) की अद्भुत गाथा, दोआबा हमें बताती है।
ये विरले , शीश कटाते-रक्त बहाते, लड़ते-लड़ते मर मिट जाते
पर झुके नहीं म्लेच्छों के आगे, यह दोआबा हमें बताती है।
समझौता ना किया इन्होंने, मुगलों को धूल चटाया था..
अंग्रेजों की सेना में घुसकर हाहाकार मचाया था।
ये लड़ते-लड़ते ख़त्म हो गये, बचे जो थोड़े बाकी हैं
दोआबा की माटी से इनके रक्त की प्यारी खुशबू आती है।
बन सको तो बनना इनके जैसे, शूरवीर;भय खाय न किसी से
ये वीर पराक्रमी क्षत्रिय ज्ञानी , इनका कोई नहीं है सानी।
दोआबा की माटी से इनके रक्त की खुशबू आती है..
सिंगरौर वंश(क्षत्रिय) की अद्भुत गाथा यह कविता हमें सिखाती है।
~ठा० आदित्य सिंह सिंगरौर “चौरासी”
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